10 पद्म पुरस्कार विजेताओं सहित देश-विदेश के विशेषज्ञ होंगे शामिल
- देहरादून, । यूपीईएस (यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज़) ने आज अपने देहरादून कैंपस में ‘हिमालय कॉलिंग 2025’ का भव्य शुभारंभ किया। हिमालयन इंस्टीट्यूट फॉर लर्निंग एंड लीडरशिप (HILL) द्वारा आयोजित यह तीन दिवसीय वैश्विक सम्मेलन हिमालय की सांस्कृतिक, पर्यावरणीय और बौद्धिक धरोहर को समर्पित है। इसका केंद्रीय विषय है — “हिमालय के साथ उठो और एसडीजी की गति बढ़ाओ”।
सम्मेलन का उद्देश्य हिमालय की प्राकृतिक सुंदरता व सांस्कृतिक समृद्धि को सामने लाना, सतत विकास पर शोध और नीति चर्चाओं को बढ़ावा देना तथा युवाओं को उद्देश्यपूर्ण नेतृत्व के लिए प्रेरित करना है। आयोजन में 700 से अधिक छात्र और 1,600 से अधिक प्रतिनिधि (ऑफ़लाइन व ऑनलाइन) भाग ले रहे हैं। इसमें 25 से अधिक सत्र और 128 वक्ता शामिल होंगे।
उद्घाटन समारोह
एमएसी हॉल में हुए उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह ने की। उन्होंने कहा —
“हिमालय कॉलिंग हमारे महान हिमालय की रक्षा के लिए सामूहिक प्रतिबद्धता है। यह सम्मेलन ज्ञान और कर्म का संगम है, जो समुदायों, वैज्ञानिकों, नीति-निर्माताओं और छात्रों को एकजुट कर स्थायी समाधान तैयार करता है।”
इस अवसर पर हिमालयी उत्पादों की प्रदर्शनी का भी उद्घाटन हुआ, जिसमें 400 से अधिक वस्तुएं (हस्तशिल्प, खाद्य उत्पाद, स्मृति-चिह्न) प्रदर्शित की गईं। यह प्रदर्शनी 9 से 11 सितम्बर तक प्रतिदिन सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक आम जनता के लिए खुली रहेगी। साथ ही हिमालयी फोटोग्राफी प्रदर्शनी भी विशेष आकर्षण का केंद्र बनी है।
पद्म पुरस्कार विजेताओं की भागीदारी
सम्मेलन की विशेषता यह है कि इसमें 10 पद्म पुरस्कार विजेता अपनी विशेषज्ञता साझा कर रहे हैं। इनमें पर्यावरणविद् डॉ. अनिल प्रकाश जोशी, वैज्ञानिक प्रो. जी.पी. तलवार, डॉ. एन.के. गांगुली, कृषि विशेषज्ञ डॉ. प्रेम चंद शर्मा, भूविज्ञानी प्रो. वी.सी. ठाकुर, सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. कल्याण सिंह रावत, चित्रकार डॉ. विजय शर्मा, लोक संस्कृति विशेषज्ञ डॉ. माधुरी बर्थवाल, आयुर्वेदाचार्य डॉ. बलेंदु प्रकाश और हिमालयी फोटोग्राफर डॉ. अनुप साहा शामिल हैं।
कार्यक्रम की रूपरेखा
तीन दिनों में विविध विषयों पर मंथन होगा —
पहला दिन: ईएसजी, पर्वतीय आजीविका, खाद्य सुरक्षा, आपदा प्रबंधन, एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस और ऊर्जा अनुकूलन।
दूसरा दिन: मिथक, इतिहास और कला को विज्ञान से जोड़ते हुए जलवायु मॉडलिंग, अक्षय ऊर्जा और हिमालयी ज्ञान परंपरा। इस दिन उच्च स्तरीय राउंड टेबल “हिमालय के सतत विकास के लिए प्रयासों का समन्वय” विशेष आकर्षण रहेगा।
तीसरा दिन: समापन सत्र और सांस्कृतिक संवाद, जिसमें स्थानीय परंपराओं को सतत विकास से जोड़ने की रूपरेखा तैयार होगी।
नेतृत्व के विचार
यूपीईएस के कुलपति डॉ. राम शर्मा ने कहा —
“हिमालय कॉलिंग एक जीवंत कक्षा है। यह सम्मेलन वैज्ञानिकों, कलाकारों, नीतिनिर्माताओं और समुदायों को जोड़कर शोध को व्यवहार में बदलने का कार्य कर रहा है।”
HILL के निदेशक डॉ. जे.के. पांडेय ने कहा —
“हम समाधान-प्रधान दृष्टिकोण अपना रहे हैं। युवा हिमालय को समस्या नहीं बल्कि साथी के रूप में देखें, यही हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।”
सततता के लिए महत्त्वपूर्ण पहल
सम्मेलन में पर्यावरण संरक्षण, नवाचार, परंपरा और तकनीकी का संगम होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह आयोजन हिमालयी क्षेत्र के सामने मौजूद चुनौतियों—ग्लेशियरों के पिघलने, जैव-विविधता हानि और भूकंपीय खतरों—का संतुलित समाधान खोजने में महत्त्वपूर्ण कदम साबित होगा।